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गीत बने नवगीत
 

 

 

 

   

 





 

 


 




 

गीत बनें
नवगीत बनें मन
छंदों में मन बुन लाएँ

भूल - भुलैया
में खोये मन
को अपनी पहचान मिलें,
शब्द नये हों
नए व्याकरण
अर्थ को अपने मान मिलें,

हर पल बने
बांसुरी ओठों
पर अंतर की धुन लाएँ 

मन डाली पल
- पाखी चहकें
श्वास के पनघट भर आएँ
हंस बने मन
नीर क्षीर के
मंथन मन से कर पाएँ

नव-वर्ष की
नव बेला में
नेह पगे मन गुन आएँ

-- गीता पंडित
३ जनवरी २०११

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