अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नया वर्ष शुभ हो
 

 

 

 

   

 





 

 


 




 

सिहर-सिहर कर शिशिर कह रहा
 नया वर्ष शुभ हो

दस्तक देता समय द्वार पर
जाता पिछला वर्ष हार कर
कहता है पल-पल पुकार कर
नया वर्ष शुभ हो

खुले रहें वातायन मति के
हों अवरुद्ध न पाँव प्रगति के
होंवें सहृदय भाव नियति के
नव प्रकर्ष शुभ हो।।

प्रकृति न अधिक प्रकोप दिखाए
तत्व न कोई प्रलय मचाए
मिलें सृजन को नई दिशाएँ
नवोत्कर्ष शुभ हो।।

उजड़े गाँव पुन: बस जाएँ
सहमे पाँव पुन: पथ पाएँ
बिछुड़े मिलें अभीप्सित पाएँ
स्वजन दर्श शुभ हो।।

हो आरोग्य, धन, धान्य आए
सुख समृद्धि नव रंग दिखाए
सपने सुखद सत्य हो जाएँ
प्रिय स्पर्श शुभ हो।।

सिंधु नहीं लांघे मर्यादा
जीवन को न सताए बाधा
रह जाए सत्कार्य न आधा
नवल हर्ष शुभ हो।।

हर अंतर से दूर भ्रांति हो
हर आनन पर नव्य कांति हो
अब न हताहत विश्वशांति हो
नव संघर्ष शुभ हो

--महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश
३ जनवरी २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter