अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नए साल की तस्वीर
 

नए साल की तस्वीर
नए साल की
उफ! कितनी
तस्वीर घिनौनी है।
फिर
अफवाहों से ही
अपनी आँख मिचैनी है।

वही सभी
शतरंज खिलाड़ी
वही पियादे हैं,
यहाँ हलफनामों में भी
सब झूठे वादे हैं,
अपनी मूरत से
मुखिया की
मूरत बौनी है।

आँगन में
बँटकर तुलसी का
बिरवा मुरझाया,
मझली भाभी का
दरपन सा
चेहरा धुँधलाया,
मछली सी
आँखों में
टूटी एक बरौनी है।

गेहूँ की
बाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
कहासुनी की
मुद्राएँ हैं
दिन सौतेला है,
दिन भर बजती
दरवाजे की
साँकल मौनी है।

-जयकृष्ण राय तुषार
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter