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आने वाले साल पर
 
तारों के कुछ फूल टाँके रात के रूमाल पर
चाँद का टीका लगाया आसमाँ के भाल पर

हर नई तारीख़ लेगी हौसलों के इम्तिहाँ
बैठे हैं नन्हें परिन्दे फ़िर समय की डाल पर

ऐसे लम्हें भी तो सरमाया रहे हैं राह में
जिनमें आँसू मुस्कुराया दर्द की चौपाल पर

ज़िंदगी की शाख़ के इस फूल को दीजै दुआ
ख़ुशबुओं के दस्तख़त हों आने वाले साल पर

बदला है फ़ानूस केवल लौ वही इक जल रही
हैं हवा की हार के चर्चे गुज़रते साल पर

है सुरीली आरज़ू, यूँ पुरसुकूं हों दिन सभी
जैसे लम्हें गा रहे हों ज़िंदगी की ताल पर

--सुवर्णा दीक्षित
३० दिसंबर २०१३

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