अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नया यह साल
 
सबको यह अभिवादन करता
सब के मन में खुशियाँ भारता
आया नया-नया यह साल
पूछ रहा है सबके हाल

किसकी कितनी यहाँ कमाई,
किसकी खेती सूखि पराई
कौन यहाँ हैं चतुरे दादा
जो बन बैठे मालामाल

हैम तो भइया हैं भिखमंगू
है सिंघासन फिर भी गंगू
तौल रहे हैं अपनी बानी
अपनी करनी अपनी ढाल

और करो कुछ फुर्सत में तुम
हाथ धरे क्यों बैठे गुम
मफ़लर टोपी वाले भइया
तुम भी ठोंको खुलकर ताल।

- कर्ण बहादुर
२९ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter