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   किरणों भरी पतंग

 
अंधियारा होने लगा, देख-देखकर दंग 
पूरब से ज्यों ही उड़ी, किरणों भरी पतंग

मैंने उससे बात की, उसने पूछी ख़ैर
करने लगे पतंग पर, नाजुक सपने सैर

पावन मन के पवन से, पावन-प्रेम पतंग
दो दिल में भरने लगी, पावन प्रेम तरंग

जीवन एक पतंग है, डोर नियति के हाथ
जब तक डोरी साथ है, तब तक जग का साथ

इस छत से उस छत तलक, उस छत से उस ठाँव
प्रेम-पतंगा उड़ रहा, बिन पग पूरे गाँव

आसमान नजदीक था, साहस था पुरजोर
मगर किसी ने काट दी, इस पतंग की डोर

नया हौसला बाँध दें, भर दें नई उमंग 
नए वर्ष में दें उड़ा, नेहिल नवल पतंग

जीवन एक पतंग है, जिसका ओर न छोर
साँस-डोर पर चल रहा, समय-हवा का जोर

कटकर गिरी पतंग भी, बता गई यह बात
अगर कटेंगे नींव से, होगी यह हालात

माँ ने पुचकारा मुझे, फड़क उठे निज अंग 
आसमान छूने लगी, आशा भरी पतंग

दो देशों के दो पथिक, लेकिन एक प्रसंग 
उड़ा रहे हैं साथ में, पावन प्रेम पतंग

रंग-रंग मिल रंग दिए, कागज रंग-बिरंग 
इस कागज से बन गयी, पावन प्रेम पतंग
     
- सत्यशील राम त्रिपाठी
१ जनवरी २०२३

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