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     . नभ में उड़ी पतंग

 
नेह प्रीत की डोर बाँध कर
नभ में उड़ी पतंग
ले मन में नयी उमंग

लाँघ दीवारें मोह माया की
जाने किसको ढूँढ रही
नभ गलियों में फिरे बाँवरी
किस उलझन से जूझ रही
जिस योगी से उलझी डोरी
बँध गई उसके संग

छूट गये सब महल चौबारे
छूटा अँगना देहरी
उम्मीदों के पंख पाँव में
हवा ने रुनझुन छेड़ी
धूप किरण की झाँझर बाँधी
पग पग में ताल- तरंग

सरसर सरसर उड़े मानिनी
लहराए पीत चुनरिया
यहीं कहीं तो पी की नगरी
यही वो मीत साँवरिया
द्वार खड़ी सब दिशा दिशाएँ
छिटकें इन्द्रधनु के रंग

- शशि पाधा
१ जनवरी २०२३

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