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आ गयी संक्रांति
 
आ गयी संक्रांति मित्रो
लेकर अपने संग
चूड़ा, तिल औ' गुड़ के लड्डू
उड़ती हुई पतंग

सर्दी के मौसम को भूल
करते गंगा स्नान
पाप धुलें और पुण्य मिलें
ऐसा बना विधान

घाट घाट सूरज छिटकाये
श्रद्धा वाले रंग

दान दक्षिणा पूजा अर्चन
भक्ति भाव का जोर
'हर हर गंगे' का हुंकारा
गूँज उठे चहुँ ओर

गंगासागर में ऊर्जा की
उठती गजब तरंग

कच्चे चूल्हे पर पकती जो
उड़द दाल की खिचड़ी
उसके आगे हैं फीके सब
खीर जलेबी रबड़ी

नए साल का पहला उत्सव
मन में भरे उमंग

- निशा कोठारी
१५ जनवरी २०१७

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