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सूरज ने फिर मोड़ दिये
 
सूरज ने
फिर मोड़ दिए अपने घोड़े

धुंध धुआँ कुछ ज्यादा-
ही जिद्दी होकर
अटटहास करते
अंधी ठिठुरन बोकर

सोच रहे थे
गरमाहट के पुल तोड़े

सत्यमेव जयते
जैसे रथ पर चढ़कर
रंग पतंग उमंग
नई पढ़कर गढ़कर

सहज भाव से
अवनी अंबर तक छोड़े

घोड़ों का मुड़ना
आशवसति, नहीं घटना
सदा एक रस
रही नहीं दिल्ली पटना

इस उस से
कितने नाते तोड़े जोड़े

- वेद शर्मा
१५ जनवरी २०१७

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