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दीप धरो
वर्ष २०१२ का दीपावली संकलन

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दीपक बन जाना तुम



 

चहु दिशि छाया
तिमिर मिटाने को दीपक बन जाना तुम
अबकी दीवाली में साथी ऐसे दीप जलाना तुम

अंधकार जो गहरा
उस पर क्रूर निशा का पहरा है
जो सम्राट उजालों का, वह अब तो गूंगा बहरा है
ऐसे में खुद बन उजियारा कण कण को
दमकना तुम

कुछ खद्योतों के
वंशज अब जलते दिए बुझाते हैं
दूजों के जीवन में करके अंधकार वह गाते हैं
बुझे हुए उन दीपों में लौ बन प्रकाश
दिखलाना तुम

चौखट लाँघ कभी
खुशियों ने दिया न दिवस सुनहरा हो
भूख प्यास से जिनका जीवन रहता ठहरा ठहरा हो
खुशियाँ उनमें बाँट होठ पर मुस्कानें
बिखराना तुम

पाकर शक्ति
असीमित कोई दशाननी आचरण करे
बाँट अँधेरा सबको अपने घर में यदि रौशनी भरे
ऐसे असुरों को दिखलाना उनका सही
ठिकाना तुम

--अशोक पाण्डेय "अनहद"
१२ नवंबर २०१२

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