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लो सज गयीं फिर
दुकानें छोटी छोटी
लिए उम्मीदें बड़ी बड़ी
कोई माटी के दीप सजाये
कोई बिजली की रंगीन लड़ी
लक्ष्मी गणेश
हनुमान, सरस्वती
फूल, बताशे, खील-खिलौने
कागज़ के कंदील पटाखे
कोई सजाये फूलझड़ी
नए नए सामान आज फिर
रौनक भरें बाज़ारों में
आओ सजाएँ घर बाहर
मुस्कानों की पिरो लड़ी
खुशियाँ जग में
करें प्रसारित
भरें संसार उजालों से
बरस बिता कर आई है
दीपोत्सव की शुभ घड़ी।
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--भावना सक्सेना
१२ नवंबर २०१२ |