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दीप धरो
वर्ष २०१२ का दीपावली संकलन

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याद में दीपावली



 

याद आती मुझको,
उन चौबारों की
जहाँ अल्लड़पन के बीते
कई पर्व सुहावन

घना कोहरा कार्तिक में
होता भानु से दूर
वासुदेव की करताल से
निंद्रा होती दूर
अभ्यंगस्नान कर हम
चंदन-इत्र लगाकर
यमदीप दान कर
मिष्ठान्न चख जाते।

करबद्ध प्रार्थना करते
वासुबारस के दिन
नैवेद्य घी-रोटी का
गौमाता को खिलाते।
इंतज़ार होता मुझको
लक्ष्मी-पूजन के दिन
दीप प्रज्वलित कर
दूर करते घना अँधेरा।
ममता की प्रतिमूति
कष्ट स्वयं झेलती
रखती उपवास उस दिन
साक्षात थी
वह गृहलक्ष्मी मेरी माँ।

राजा बलि का दान
मन को झकरोता है
होता पूजन उनका
बलिप्रतिपदा के दिन
एक उत्सव और भी
देता याद मुझको
राधा का रूप लेकर
लोग झूमते रातभर
संध्या की चहलकदमी
याद दिलाती बहन की
उसके आँगन में
सजती भाईदूज की थाली
पाँच दिन का पर्व यह
भारत वर्ष की पहचान है
परम्परा की जान है

नागेश भोजने
१२ नवंबर २०१२

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