अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीवाली आई

   



 

हुए नगर के गाल गुलाबी
उजियारे से रात नहाई
धवल वसन पहने बस्ती ने
दीप जले दीवाली आई

भाईचारा प्रेम परस्पर
फैलाना है हम को जग में
अंतर मन को चलो बुहारें
रहे न कोई काँटा मग में
आशा के दीपक की लौ से
उर के अंधकार को छाटें
इक्छाशक्ति बढाएँ इतनी
मुश्किल की चट्टाने काटें
उजियारे ने अधियारे पर
विजय ध्वजा अपनी फहराई

दुखदाई हों आगे चलकर
बंद करें बो सभी प्रथाएँ
पर्यावरण प्रदूषित करते
आतिशबाजी नहीं चलाएँ
बम पटाखों की परिधि में
वादर सूक्ष्म जीव जो आते
पल भर की मुस्कान हमारी
किंतु जीव सब प्रान गवांते
जिएँ और जीनें दें सबको
संदेशा हम सब को लाई

बहन बहू बेटी को पूजें
फिर कुबेर की करिये पूजा
लक्ष्मी जी को खुश करने का
अन्य उपाय नहीं है दूजा
रूठों को हम गले लगाकर
चलो मनो मालिन्य मिटाएँ
हमसे आस बँधी है जिनकी
चल, उनको सम्बल दे आएँ
मन में भर उल्लास राम को
अब्दुल देने चला बधाई

- मनोज जैन मधुर
२० अक्तूबर २०१४

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter