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जगमग दीप जलें हर ओर

   



 

सूना रहे न कोई कोना
जगमग दीप जलें हर ओर

ओठों पर
मुस्कान खिली हो खूब भरा उल्लास हृदय में
आँखों में हो स्वप्न सुहाने डूबा हो मन प्रभु की लय में
पुष्पों की खुशबू से महके घर आँगन का
हर इक छोर

मधुर भाव ले
सभी जगायें अमिट स्नेह अपने अंतस में
भेदभाव का तमस मिटाकर पर्व मनायें मिल आपस में
मधुर स्वरों में करें वन्दना होकर सारे
भाव विभोर

श्रीलक्ष्मी का
पूजन कर लें धन वैभव की करें कामना
सब समाज की प्रगति के हित खूब भरी हो मन में भावना
खुशियों के बादल छा जायें नाच उठे सबका
मन मोर

नए विचारों के
प्रकाश में मर्म पुराना भी पहचाने
भौतिकता की चकाचौंध में अपनी मर्यादा को जाने
मिट्टी का दीपक छोटा सा अँधियारा हरता
सब ओर

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
२० अक्तूबर २०१४

   

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