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मंगल दीप

   



 

हे शुभ-ज्योति मंगल दीप!
करती विनती तुम्हें आज।
उन घर-कुटियों को करना
चहुँ ओर से अलोकित
कल्याण का दीप जलाके
करना ज्योति का प्रसार।

हे शुभ-ज्योति मंगल दीप!
करती विनती तुम्हें आज।
रिश्तों में खींची द्वेष दीवार
सब ग्रंथों का बन प्रकाश
प्रेम का दीप जलाके
करना जगत में उजास।

हे शुभ-ज्योति मंगल दीप!
करती विनती तुम्हें आज।
बारूदी अंगारे सुलगाते
देश में दोगले गद्दार
मानवता का दीप जला के
बनाना खुद से खुदा इंसान।

हे शुभ ज्योति मंगल दीप!
करती विनती तुम्हें आज।
अन्नदाता करते आत्म हत्या
करें हम सब इस पर विचार
ऋणमुक्त का दीप जला के
करना ऋद्ध अब किसान।

हे शुभ-ज्योति मंगल दीप !
करती विनती तुम्हें आज।
शहर - गाँव - गलियों में दुष्कर्मी
लूट रहे कन्या-नारी की लाज
जोश-शक्ति का दीप जलाके
भरना दुर्गा-दामिनी सम विश्वास

- मंजु गुप्ता
१ नवंबर २०१५

   

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