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जग मना रहा दीवाली

   



 

सजी हुई है हर घर के
आँगन में दीपों की लड़ियाँ।
बच्चों के इक हाथ मिठाई
औ’ दूजे में फूलझडि़याँ।

श्री-गणेश की अगवानी को
है सजी हुई पूजा की थाली।
जग मना रहा
दीवाली।

छाया चारों ओर उजाला
दिखता नहीं कहीं अँधियारा।
मन में फिर क्यों अंधकार हो
निर्मल, निश्छल, निर्विकार हो।

हर्षित जन-जन, लगती है
यह जगमग रात निराली।
जग मना रहा
दीवाली।

किसी दीन की कुटिया में भी
चलो चलें इक दीप जलाएँ।
हारे, थके, दुखी जीवन में
आशा की इक जोत जगाएँ।

दे कर के मुस्कान किसी को
सफल करें अपनी दीवाली।
जग मना रहा
दीवाली।

- अनुराग तिवारी
१ नवंबर २०१५

   

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