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मंगल दीप जलाएँ

   



 

झिलमिलाते जगमगाते
आओ आशा के मंगल दीप जलाएँ
चलो हम सब मिलकर
दिवाली साथ मनाएँ

अन्तर्मन में क्यों फैला हुआ है
ये घनघोर अँधियारा
आओ पहले अपने अन्दर फैली
अमावस की चादर हटाएँ और
उजियारे की स्वर्णिम चेतना जगाएँ
ये क्यों चढ़ा रखी है परत
अवसाद की मन की दीवारों पर
आओ उसे साफ़ करें और
उज्जवल प्रेम के रंग से रंग रोगन कराएँ

अब खोल भी दो न मन के
अदृश्य खिड़की दरवाजों को
आने दो पवन पावन को
जिसमें हम ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर
ज्ञान की खुशबू फैलाएँ
आओ हम मिलकर मन के आँगन में
उल्लास से भरे जीवन के रंगों की रंगोली रचाएँ

आओ मिलकर मन-मंदिर में
संतोष धन की लक्ष्मी स्थापित कर
संग श्री गणेश पूजन कराएँ
आओ हम सब अहं को त्याग कर
मन के द्वार पर आत्मविश्वास से भरी
सदभावनाओं का वन्दनवार सजाएँ

आओ मिलकर
दिवाली के मधुर सन्देश की मशाल जलाएँ
आओ हम सब मिलकर दिवाली साथ मनाएँ

- प्रेरणा गुप्ता
१५ अक्तूबर २०१६
   

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