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दीपक और बाती

   



 

जल रही बाती यहाँ पर
नाम है बस दीप का

आ गयी दीपावली फिर
आस लेकर के नई
एक कपड़े के लिए बस
आज मुनिया रो गई

देखती वह रास्ता है
साहबों की जीप का

फाइलों में सज रही हैं
अर्जियाँ हर दीन की
कौन सुनता है यहाँ पर
धुन पुरानी बीन की

दाम है मुश्किल चुकाना
आफिसों में टीप का

बूँद इक आकर गगन से
रेत में ही खो गई
सीप ने जिसको सँभाला
आज मोती हो गई

पर न समझा मोतियों ने
मूल्य अपनी सीप का

- बसंत कुमार शर्मा
१५ अक्तूबर २०१६
   

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