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मन उदास है इस दीवाली

   



 

कल सीमा पर चौकसी बढ़ी है
बस टीवी पर आँख गड़ी है
मन उदास है
इस दीवाली

यों तो सारा गाँव मगन है
चिंता की कुछ बात नहीं है
जब से उधर तनाव बढ़ा है
जिज्जी भी आ गई यहीं है

अच्छा होता तुम भी होते
बाबा भी सुकून से सोते
कटें न हमसे
रातें काली

सारा देश पटाखे फोड़े
उधर वहाँ पर बम दगते हैं
आओ तो अनार छोड़ेंगे
मुनिया को अच्छे लगते हैं

पहले सारा देश मना ले
तब तक तू चौकसी बढ़ा ले
हम सब की करना
रखवाली

कुछ थोड़े से लोग कह रहे
तुमको पता तुम्हें है मरना
मुझे पता है लेकिन तुमने
सीखा नहीं मौत से डरना

बाकी सब हैं साथ तुम्हारे
सबके तुम आँखों के तारे
लिए खड़े पूजा
की थाली

- डॉ. प्रदीप शुक्ल  
१५ अक्तूबर २०१६
   

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