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         दीपक के नीचे छिपा अँधेरा

दीपक के नीचे छिपा अँधेरा रहता है
क्या दीपावलि है तम हरने की गारंटी
लक्ष्मी का आवाहन हमने कर ही डाला
क्या यह आवाहन धन झरने की गारंटी

मन-भर दीपक के तन में कड़ुआ तेल भरा
यह चू न जायगा, कौन भला दे गारंटी
धन का तो पता नहीं है, कितना पास बचा
केवल चिल्लर-चिल्लर से भारी है अंटी

जीवन जीने की संभावना हुई कमतर
होने को है यह सांसारिक विप्लव दुस्तर
है धुआँ-धुआँ देखो मौसम, दम घुटता है
क्या साँस न आना है मरने की गारंटी

दीपक का होना याकि न होना इस तम में
तम विशद बहुत, जितना बाहर, उतना भीतर
तन की, मन की आँखें चुँधियाई जाती हैं
ये आँखें अब बेकार हुईं तम में जीकर

जल में थल, थल में जल के भरम हज़ारों हैं
सब पाश कठोर न, कोमल-नरम हज़ारों हैं
चलिए, तिनके का एक सहारा ढूँढें अब
क्या सबल नाव दुस्तर तरने की गारंटी

दीपक दीपक के साथ जले यों आजीवन
इनमें कोई नेता न, सभी साधारण जन
इनमें कोई नेता होता तो छल लेता
देता फिर दीप-सभा में कुछ झूठे भाषन

ऐसे दायित्व महत्तर तू मत धर काँधे
जिसके-तिसके आगे हों नत ये कर बाँधे
लक्ष्मी! जो कुछ भी दे, बस सोच समझकर दे
कब धन-वैभव आँसू हरने की गारंटी

दीपक मिल जाए, सँग कपास की बाती भी
हो तेल अघट्ट भरा दीपक के जीवन में
माचिस पर कब तक सीली तीली को रगड़ें
जब ऊष्मा शेष नहीं कुछ भी अंतर्मन में

सुख-सुविधाओं के उपादान जोड़े अनगिन
सुख-समाधान से दूर रहे सारे पल-छिन
सागर-तट या सरिता-तट वासी होना क्या
ये ही कब सारा रस भरने की गारंटी

- पंकज परिमल

१ नवंबर २०२०
 

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