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         हाथों में जलती फुलझड़ी


फूलों की झड़ी, यादों की लड़ी
अल्हड़पन जड़ी, बचपन की घड़ी
चिर प्रतीक्षित
रात दीपावली
हाथों में जलती फुलझड़ी

भागी आती नन्ही गुड़िया
शावक सी भर-भर चौकड़िया
उपहारों की खोली तगड़ी
खींच निकाली तारक-मणि

बम पटाखे शोर मचाते
क्षणभर जीकर झट मर जाते
बड़ी देर तक मुस्का- मुस्का
मन बहलाती है फुलझड़ी

नहिं शुरली सी गगन चूमती
नहिं अनार सी फूट झूमती
न कंदील-सी पल पल डोले
हाथों में बसती फुलझड़ी

नहिं डर, ना आतंक फैलाए
नहि ध्वनि-वायु प्रदूषण लाए
बालक मन, की नन्ही खुशियाँ
चम-चम करती है फुलझड़ी

- मधु संधु

१ अक्टूबर २०२२

       

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