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         फुलझड़ियों का उत्सव


आओ फुलझडियो का
उत्सव मनाएँ

बिहंस रही रोशनी धरा और अंबर में
फुलझडियो सी जिंदगी है जीवन के दर्पण में
पुलकित मन झूम झूम गाएँ गीत सृजन के
आओ हम आलोकित
हर मन कर जाएँ

आओ फुलझडियों का उत्सव मनाएँ
दीपों की माला में बाँध लिया मन को
किरण किरण रोशनी की सिहराती तन को
आओ सखी नभ से
आलोक माँग लाएँ


चहुँ दिशि बिखराती रुप की छटाएँ
जगमग कर तिमिर को प्रकाश भर जाएँ
जीवन का हर पल प्रदीपित हो जाए
दूर हों निराशा की
उमड़ती घटाएँ

- पद्मा मिश्रा
१ अक्टूबर २०२२

       

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