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         फुलझड़ी बन जाऊँगी


मै तेरी सब
चाहतों की फुलझड़ी बन जाउँगी

धड़कने जब जब हिरन-सी
चौकड़ी भरने लगे
और साँसों का समुंदर भी
समर करने लगे
इस लहर में तू अकेला
जब कभी पड़ जाएगा
उस घड़ी पतवार-सी मैं
सहचरी बन जाउँगी

तोड़ कर नयनों की कारा
दूर न जा पाएगा
जो गया तो लौट कर
वापस इसी में आएगा
फिर तो मैं तेरे लिए
इक हथकड़ी बन जाउँगी

आ न पाएगा
निराशा का अंधेरा पास में
है उम्मीदों का दिया
रौशन अगर अहसास में
जो सभी को दे उजाला
वो लड़ी बन जाउँगी

- शंभु शरण मंडल

१ अक्टूबर २०२२

       

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