अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

       

         मनभावन है फूलझड़ी


झर झर झर झर जली जा रही
मनभावन है फूलझड़ी

हर आँगन की शोभा बनती
सब बच्चों बूढ़ों को भाती
फूल सितारों जैसे झड़ते
खुशियाँ जहाँ तहाँ बिखराती
मन ही मन माँ भी मुस्काती
दरवाजे पर खड़ी खड़ी

दीवाली का पर्व आ गया
पावन सा माहौल छा गया
दीपों की शुभकर माला का
रौशन सब संसार भा गया
फूलों की मालाएँ सज गयी
हो छोटी या खूब बड़ी

रंग बिरंगे दृश्य बने हैं
सज धजकर सब बने ठने हैं
माँ लक्ष्मी के साधक हैं सब
उमड़े मन में भाव घने हैं
नजर नहीं हटती पल भर भी
रह जाती है आँख गड़ी

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ अक्टूबर २०२२

       

अंजुमन उपहार काव्य चर्चा काव्य संगम किशोर कोना गौरव ग्राम गौरवग्रंथ दोहे रचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है