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         एक दीपक हम धरें


इस अँधेरी रात का मिलकर चलो कुछ तम हरे
एक दीपक तुम धरो और
एक दीपक हम धरें

फिर किरण के
हाथ  भेजें  रोशनी  के  खत  नये
द्वार- देहरी पर सजाएँ शुभ रंगोली, सातिये
अल्पनाओ में नये फिर
रंग खुशियों के भरें

कह रही है
दीप की ये ज्योति क्या, आओ सुनें
बैठ इसके पास दो पल कुछ मधुर यादें बुनें
जोड़ कर संवाद मन के
नेह की बातें करें

आ गईं
लेकर हवाएँ दिन नये मनुहार के
तारिकाओं से खिले हैं फूल हरसिंगार के
आज धरती से गगन तक
ज्योति के झरने झरें

जब मचलकर
दीप  की  लौ  गीत  मंगल  गाएगी
ये अमावस की निशा दीपावली बन जायेगी
अंश होकर सूर्य के हम
क्यों अंधेरों से डरें

- मधु शुक्ला 

१ नवंबर २०२३
   

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