अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

सर्दियों में बारिश

सर्द सुबह

मल्हारें गाने लगी खिड़की पर बरसात
जलतरंग बजती रही सर्दी वाली रात
.
पवन मंद लिखता रहा बूँदों वाले छंद
और हवा कहती रही कविताएँ स्वच्छंद
.
बादल मतवाले हुए पीटें ढोल मृदंग
जोर शोर से बढ़ गई जाड़े वाली जंग
.
जाते जाते रुक गया सर्दी का कोहराम
जाड़े में कटती नहीं बिन अलाव के शाम
.
सर्दी सर्दी मन हुआ सिहरन सिहरन गात
गरम चाय लगने लगी मनभावन सौगात
.
- पूर्णिमा वर्मन
१ दिसंबर २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter