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पत्र व्यवहार का पता

24. 11. 2007  

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मन मछेरा हो गया

तुम हृदय के द्वार पर आए
उजेरा हो गया

आँसुओं ने एक लिख डाली कथा
थी छिपी जिसमें घरौंदे की व्यथा
किंतु तिनके बीन तुन लाए
बसेरा हो गया

इस जगत ने झूठ ही हमको दिया
हमने तेरी आँख से सच को पिया
अब निशा का तम भले छाए
सवेरा हो गया

तुम हृदय सागर तलक जाओ ज़रा
सीप के मोती उठा लाओ ज़रा
मन हमारा मीन बिन पाए
मछेरा हो गया

चल रहा हर पाँव तपती रेत पर
क्यों न सुस्ता लें ज़रा-सा खेत पर
रास्ते को क्या कहा जाए
लुटेरा हो गया

-डॉ. शशि तिवारी

 

इस सप्ताह

कविताओं में-
मोहन कुमार डहेरिया

देशांतर में-
यू.ए.ई. से स्वाती भालोटिया

गीतों में-
डॉ. शशि तिवारी

अंजुमन में-
देवी
नांगरानी

नई हवा में-
राजीव कुमार

पिछले सप्ताह
16 नवंबर 2007 के अंक में

इस माह के कवि में-
कविता वाचक्नवी

अंजुमन में-
राजेन्द्र पासवाल घायल

गीतों में-
शिव भजन कमलेश

बाल दिवस के अवसर पर
पवन चंदन,  भावना कुंअर और
शरद तैलंग के शिशुगीत

दोहों में-
कन्हैयालाल शर्मा

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