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२७. ८. २०१२

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मोर-पंखिया शाम

 

लाई कौन सँदेश यहाँ फिर मोर-पंखिया शाम
कण-कण में बिखराया किसने,
मीत तुम्हारा नाम

सिंदूरी एहसास हुए फिर
वीरबहूटी मन
ईंगुर-ईंगुर चाह नवेली
संगमरमरी तन

किसलय-किसलय यौवन चर्चित, मृदुल संदली शाम
कण-कण में बिखराया किसने,
मीत तुम्हारा नाम

जमी पीर चिरजीवी मन में
आँखें भर सागर
वासन्ती मनुहार भरी
साँसें है नट-नागर

जल-तंरग सी चितवन तेरी अंग अंग अभिराम
कण-कण में बिखराया किसने,
मीत तुम्हारा नाम

दिप-दिप होती रही रात भर
जुगनू भरी हथेली
सिहर-सिहर जाती हो जैसे
दूल्हन नई नवेली

चन्द्रहास मुस्कान तुम्हारी बन्धन ललित ललाम
कण-कण में बिखराया किसने,
मीत तुम्हारा नाम

--निर्मला साधना

इस सप्ताह

गीतों में-

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निर्मला साधना

अंजुमन में-

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 डॉ. शिवशंकर मिश्र

छंदमुक्त में-

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सुशील जैन

मुक्तक में-

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 धर्मवीर भारती

पुनर्पाठ में-

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डा. भारतेन्दु श्रीवास्तव

पिछले सप्ताह
२० अगस्त २०१२ के अंक में

गीतों में-

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विनय मिश्र

अंजुमन में-

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राम अवध विश्वकर्मा

छंदमुक्त में-

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मीता दास

छोटी कविताओं में-

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अरुण कुमार मयंक

पुनर्पाठ में-

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डॉ. अजय त्रिपाठी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
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