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अभिव्यक्ति तुक-कोश

४. ३. २०१३

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वाल्मीकि की प्रथा

वाल्मीक की प्रथा निभाई
हमसे नहीं गई

जप-जप उल्टा
नाम कहाँ तक ब्रह्म समान बनें
सोच-समझ अनुभव के जाए तीर कमान तनें
रामायण की सीता गाई
हमसे नहीं गई

दु
निया दारी
बाहर यारी के झण्डे बाँधे
भीतर-भीतर शातिर चालें चलते दम साधे
उनकी गठरी और उठाई
हमसे नहीं गई

गाँवों की
गलियों में अब बारूद पनपता है
अंधी जाग्रति वाला अंधा नाग सनकता है
दौड़ भयंकर यह रुकवाई
हमसे नहीं गई

चम्पा भी
अब चीन्ह रही है किस्मत के काले अक्षर
पूछ रही है भाग हमारे किसने ये डाले अक्षर
उत्तर वाली पंक्ति पढ़ाई
हमसे नहीं गई।

- राजा अवस्थी

इस सप्ताह

गीतों में-

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राजा अवस्थी

अंजुमन में-

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राम बाबू रस्तोगी

छंदमुक्त में-

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राजेश जोशी

कुंडलिया छंद में-

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गाफिल स्वामी

पुनर्पाठ में-

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डॉ. पुष्पिता अवस्थी

खबरदार कविता में-

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प्रो. विश्वम्भर शुक्ल

पिछले सप्ताह
१८ फरवरी २०१३ के अंक में

गीतों में-
मृदुल शर्मा

अंजुमन में-
धर्मेन्द्र कुमार सिंह

छंदमुक्त में-
इंदु जैन

छोटी कविताओं में-
कृष्ण कन्हैया

पुनर्पाठ में-
राधेकांत दवे

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
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