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१५. ७. २०१३

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आओ खेलें खेल

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वैसे वाला खेल, पैसे वाला खेल
आओ खेलें खेल

झूठ मूठ की बातें करके
अपनी सुन्दर, रातें करके
हवा में टावल को लहरा कर
दूजों को दोषी ठहरा कर
खूब माल तू पेल
आओ खेलें खेल

अट्टा बट्टा खेलें सट्टा,
हम थाली के चट्टा बट्टा
खुद तो खावें मीठा मीठा,
तुझको सरका देंगे खट्टा
पंगा तू ही झेल
आओ खेलें खेल

बाजी बाजी एक दम ताजी
खेल खेल में हाँ जी ना जी
मिल जुल कर तू माल बना जी
मतकर ठेलम ठेल
आओ खेलें खेल

बिंदू सिन्दू,राजा बंधू,
संत सरीखे सारे बंधू
एक दम नेक, कमी न एक
सबने देखा तू भी देख
लगी खेल की सेल
आओ खेलें खेल

-योगेश समदर्शी

इस सप्ताह

गीतों में-

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योगेश समदर्शी

अंजुमन में-

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वीरेन्द्र कुँवर

छंदमुक्त में-

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कविता सुल्ह्यान

मुक्तक में-

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मीना अग्रवाल

पुनर्पाठ में-

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सुरेन्द्रनाथ तिवारी


पिछले सप्ताह
८ जुलाई २०१३ के अंक में

गीतों में-
अमन दलाल

अंजुमन में-
लक्ष्मण

छंदमुक्त में-
ब्रजेश नीरज

हाइकु में-
योगेन्द्र वर्मा

पुनर्पाठ में-
सुरेन्द्रनाथ मेहरोत्रा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
 

 

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