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२१. ४. २०१४

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साहब तो साहब होता है

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सरसों करतल पर बोता है
साहब तो साहब होता है

साहब ने पोथी पढ़ लिखकर
विद्या बुधि के झंडे गाड़े
एक कमाऊ कुर्सी खातिर
जोग जुगत के पढ़े पहाड़े
ऊपर सूटकेस पहुँचाकर
साहब विजयी हुए अखाड़े
अब बहती गंगा में निशदिन
साहब का लगता गोता है

दफ्तर में साहब के मुँह में
रहता सदा जेठ का मौसम
पर आमद ठेकेदारों की
साहब से बिछवाती जाजम
बंद किवाड़ों के अंदर से
खुसर-पुसर की बजती सरगम
साहब ने सेक्शन सेक्शन में
पाल रखा मिट्ठू तोता है

आना-जाना काम समय से
ड्यूटी के पाबंद फरीदे
माथापच्ची फ़ाइल नोटिंग
जी ओ पढ़ पढ़ फूटे दीदे
मिटटी के माधो ने प्रभु की
नहीं शान में गढ़े कशीदे
बैठे मार कुल्हाड़ी पैरों
अब पछताए क्या होता है

-रामशंकर वर्मा

इस सप्ताह

गीतों में-

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रामशंकर वर्मा

अंजुमन में-

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संतोष कुमार पांडेय

छंदमुक्त में-

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नीरज कुमार नीर

हास्य व्यंग्य में-

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सरोजिनी प्रीतम

पुनर्पाठ में-

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चंदन सेन

पिछले सप्ताह
१४ अप्रैल २०१३ के अंक में

गीतों में-

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कृष्ण सुकुमार

अंजुमन में-

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मनोहर विजय

छंदमुक्त में-

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दिगंबर नसवा

दोहे में-

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प्रवीण कुमार अग्रवाल

पुनर्पाठ में-

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अरुणा घवाना

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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