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अनुभूति में आलम खुर्शीद की रचनाएँ

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अपने पिछले सफ़र
जब भी फसलों को
सुलगती रेत पे

अंजुमन में-
उठाए संग खड़े हैं
जब खुली आँखें
मानूस कुछ ज़रूर है
याद करते हो मुझे
सियाहियों को निगलता हुआ

 

 

  सुलगती रेत पे

सुलगती रेत पे रौशन सराब रख देना
उदास आँखों में खुशरंग ख़्वाब रख देना

सदा से प्यास ही इस ज़िन्दगी का हासिल है
मेरे हिसाब में ये बेहिसाब रख देना

वफ़ा, ख़ुलूस, मुहब्बत, सराब ख़्वाबों के
हमारे नाम ये सारे अज़ाब रख देना

सुना है चाँद की धरती पे कुछ नहीं उगता
वहाँ भी गोमती, झेलम, चिनाब रख देना

क़दम क़दम पे घने कैक्टस उग आए हैं
मेरी निगाह में अक्से-गुलाब रख देना

मैं खो न जाऊँ कहीं तीरगी के जंगल में
किसी शज़र के तले आफ़ताब रख देना

८ मार्च २०१०

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