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अनुभूति में गुलाब जैन की
रचनाएँ -

अंजुमन में-
इससे पहले
चाहतें थी कभी
मंजिल मिल भी गयी
यहाँ आस्तीनों में
 

 

यहाँ आस्तीनों में

यहाँ आस्तीनों में साँप पलते हैं
चलो इस बस्ती से दूर चलते हैं

क्यों बुरा कहते हो गिरगिट को
लोग भी अक़्सर रंग बदलते हैं

वक़्त से जीता ना आज तक कोई
बादशाहों के भी आफ़ताब ढ़लते हैं

जब भी होता है हसीं साथ तेरा
लम्हें क्यों हाथ से फिसलते हैं

कौन है जो हमें खिलने से रोकेगा
'गुलाब' सदा ख़ारों के साथ फलते हैं

१ जून २०१७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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