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कितनी मुश्किल
कौन धूप सा
दानिशमंदों के झगड़े
सच के हक में
सबकी सुनना

अंजुमन में-
उससे मिल आए हो
सबका यही खयाल
काम करेगी उसकी धार
जुगनू बन या तारा बन
टूट जाने तलक

सच कहना और पत्थर खाना
सच का कद
सरहदें नहीं होतीं

  सबकी सुनना

सबकी सुनना अपनी करना
प्रेम-नगर से जब भी ग़ुजरना

बरसों याद रक्खें ये मौजे
दरिया से यूँ पार उतरना

अनगिन बूँदों में कुछ को ही
आता है फूलों में ठहरना

फूलों का अंदाज़ सिमटना
खुशबू का अंदाज बिखरना

अपनी मंजिल ध्यान में रख कर
दुनिया की राहों से ग़ुजरना

९ जुलाई २०१२

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