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अनुभूति में सर्वत जमाल की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आराम की सभी को है आदत
पता चलता नहीं
लिखते हैं
हर कहानी चार दिन की
होगी तेरी धूम

  लिखते हैं

लिखते हैं, दरबानी पर भी लिक्खेंगे
झाँसी वाली रानी पर भी लिक्खेंगे

आप अपनी आसानी पर भी लिक्खेंगे
यानी बेईमानी पर भी लिक्खेंगे

महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे

फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे

अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे

बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे

हम ने सर्वत प्यार मुहब्बत खूब लिखा
क्या हम खींचातानी पर भी लिक्खेंगे

१५ नवंबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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