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अनुभूति में लक्ष्मण की रचनाएँ

अंजुमन में-
नजर ढूँढती रहे नजारा
न तलवारें उठाई हैं
फुरसत न थी

यों तो सबको

  फुरसत न थी

फुरसत न थी सुकून न था कुछ खुशी न थी
वैसे तो जिंदगी में कहीं कुछ कमी न थी।

जितना बढ़ा खुमार मैं गिरता चला गया
ऐसा न था जमीर ने आवाज दी न थी।

खुद को सँवारने के लिए वो तड़प उठे
मजबूर थे कि घर में कोई आरसी न थी।

जीने की खूब चाह थी फिर भी न जी सका
मुझ पे यकीन कीजिए वो खुदकुशी न थी।

मेरी गजल ज्यों कोई मुसलसल तलाश हो
शायद वो बात थी कि जो अब तक कही न थी।

८ जुलाई २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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