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अनुभूति में मेघ सिंह मेघ की रचनाएँ-

मुक्तक में-
सद्भाव के पैगाम

अंजुमन में-
कहीं गरीब
काबिले-विश्वास अब
गहन निद्रा में सखे
जो सत्य नजर आया
हर धरम

 

 

काबिले-विश्वास अब

काबिले-विश्वास अब रहबर नहीं मिलता
प्यार बसता हो जहाँ वह घर नहीं मिलता

अब तलक जो भी मिले हैं वो मिले खारे
क्यों मुझे मीठा कोई सागर नहीं मिलता

साधना, सेवा, समर्पण खो गये हैं सब
प्रेम औ सद्भावना का स्वर नहीं मिलता

मन्दिरो-मस्ज़िद में भी बातें फसादों की
अब कहीं भी अम्न का मंज़र नहीं मिलता

तम यहाँ चारों तरफ फैला हुआ गहरा
मिलते हैं जुगनू मगर, दिनकर नहीं मिलता

सब खड़े अपनी जगह अभिमान से तनकर
कोई आगे प्रेम से, बढ़कर नहीं मिलता

एकता बन्धुत्व का कल-कल भरे दिल में
हर कलुष को धोये, वो निर्झर नहीं मिलता

जो चमकते खूब, वो कंचे हैं काँच के
“मेघ” को असली यहाँ गौहर नहीं मिलता 

१९ अगस्त २०१३

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