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अनुभूति में मुन्नी शर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आज भी है
गूँगों की आवाज
पतझड़ भी लिख
बंदिशों को तोड़कर
शायरी अपना शगल

 

गूँगों की आवाज

गूँगों की आवाज खुलेगी धीरे धीरे
संकोची कलियाँ चटकेंगी धीरे धीरे

रफ्ता रफ्ता हम भी चलना सीख गए
कदमों की रफ्तार बढ़ेगी धीरे धीरे

जाँच रहा माझी लहरें मझधारों की
हाथों की पतवार चलेगी धीरे-धीरे

सदियों से अड़ रहे अना के ये पर्वत
अहंकार की शिखा घिसेगी धीरे-धीरे

माँ भी है नाराज़ भटकते बच्चों पर
लेकिन अपनी बात कहेगी धीरे-धीरे

उतर ज़मीं पर आएगी कमसिन पीढ़ी
पर ख्वाबों की उम्र ढलेगी धीरे-धीरे

शोख बच्चियाँ खुद संजीदा हो जातीं
जब आँचल में हया पलेगी धीरे-धीरे

नंगे जज़्बे देख अदब शर्मिंदा है
लफ़्ज़ों की पोषाक सिलेगी धीरे-धीरे

९ दिसंबर २०१३

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