अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राम अवध विश्वकर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
गुलों में रंग न खुशबू
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
दिलों में जो हैं दूरियाँ
ये मस्जिद और ये मंदर
हम पहली बार

 

ये मस्जिद और ये मंदर

ये मस्जिद और ये मंदर अभी भी
उजाड़ेंगे हजारों घर अभी भी !

तरक्क़ी का ज़माना है तो लेकिन
बहुत से खेत हैं बंजर अभी भी !

अचम्भे में सभी को डाल देगा
दिखा कर खेल जादूगर अभी भी !

वहाँ पर घर बनाकर क्या करेंगे
बरसते हों जहाँ पत्थर अभी भी !

वजह तुम ही हो जो सूखे पड़े हैं
हमारे गाँव के पोखर अभी भी !

वही होगा जो मैं चाहूँगा देखो
मेरी मुट्ठी में हैं अवसर अभी भी !

२० अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter