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अनुभूति में राजीव भरोल की रचनाएँ—

अंजुमन में—
किसी सूरत
जहाँ कहीं हमें दाने
तुम्हारी सोच के साँचे
मुहब्बत का कभी इज़हार
मेरी हिम्मत के पौधे को
मैं चाहता हूँ
मैंने चाहा था

 

मैंने चाहा था

मैंने चाहा था सच दिखे हर सू,
उसने आईने रख दिए हर सू।

ख्वाहिशों को हवस के सहरा में,
धूप के काफिले मिले हर सू।

काँच के घर हैं, टूट सकते हैं,
यूँ न पत्थर उछालिए हर सू।

फूल भी नफरतों के मौसम में,
खार बन कर बिखर गए हर सू।

लोग जल्दी में किसलिए हैं यहाँ,
हड़बड़ाहट सी क्यों दिखे हर सू?

२३ जनवरी २०१२

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