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अनुभूति में राम बाबू रस्तोगी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
कभी जंगल कभी दरिया
जैसा मौसम वैसे मंजर
बहुत से मसअले
समंदर पर बरसता है

 

जैसा मौसम वैसे मंजर

जैसा मौसम वैसे मंजर होते हैं
सुख-दुख तो सब मन के अंदर होते हैं।

उनकी पूजा में व्यवधान नहीं पड़ता
हर लिहाज से संत समंदर होते हैं।

आँखों में आँसू की जितनी परतें हैं
रंज़-ओ-अलग के उतने ही घर होते हैं।

पेड़-हवा-पानी-खुशबू-किरने-चंदन
इस धरती के कितने जेवर होते हैं।

जीते जी चलती है रूतबे-पैसे की
मरने पर सब एक बराबर होते हैं।

४ मार्च २०१३

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