अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संजय विद्रोही की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अपने जख्मों की
नींदों में चलने वाले
यों तो सीधा
सन्नाटे हैं

  यों तो सीधा

यों तो सीधा खड़ा हुआ हूँ
पर भीतर से डरा हुआ हूँ

तुमको क्या बतलाऊँ यारो
जिन्दा हूँ पर मरा हुआ हूँ

हँसना भूल गया हूँ अब तो
आँसू पीकर बडा हुआ हूँ

जी भर भर के कोसो मुझको
इस जीवन से भगा हुआ हूँ

अपना पता बता दो 'संजय'
मैं खत लेकर खडा हुआ हूँ

६ जुलाई २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter