अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शादाब जफर शादाब की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अचानक वो फिर
ऐसे कपड़ों का
कहूँगा रात को
किस के दम से रोशनी है
ज़ुबा पर हर किसी के

'

किसके दम से रोशनी है

किस के दम से रोशनी है पूछ लेना चाँद से
चाँद से ही चाँदनी है पूछ लेना चाँद से

तेरे चेहरे की चमक और उस पे जुल्फों की घटा
शायरों की शायरी है पूछ लेना चाँद से

देख सकते हैं तूझे हम और पा सकते नहीं
ये हमारी बेबसी है पूछ लेना चाँद से

है जहाँ में कौन चंदा किसको कहते हैं चकोर
किस के दम से आशिकी है पूछ लेना चाँद से

तेरे अन्दर दो जहाँ की खूबियों के बावजूद
किस बला की सादगी है पूछ लेना चाँद से

जिस के सब अल्फाज तारों की तरह हैं वो गजल
देख कर किस को कही है पूछ लेना चाँद से

देख मत 'शादाब' होठों पर तबस्सुम की लकीर
आग किस दिल में लगी है पूछ लेना चाँद से

२१ अक्तूबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter