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अनुभूति में शाहिद नदीम की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
किसी फरेब से
तसव्वुर में तेरा चेहरा
दिल दुखाता है
हर नफस को खिताब

अंजुमन में-
उसी फिजां में
देखते हैं
नस्ले-आदम
शब का सुकूत
सुनहरी धूप का मंजर

 

सुनहरी धूप का मंज़र

सुनहरी धूप का मंजर सुहाना लगता है
मगर समझने में इसको जमाना लगता है

जो हो सके तो नयी रौशनी को अपना लो
तुम्हारी आँख का जुगनू पुराना लगता है

अब उस जगह पे रुकीं हैं समा अतें मेरी
जहाँ यह  किस्स-ए-गम  शादमाना लगता है

वह एक धुंधला सा अहसासे-आरजू अब तो
दिलो-नजर के लिए ताजयाना लगता है

मेरी सजाओं को किस्तों में बांटने वाले
तेरा यह फैसला अब मुनसिफाना लगता है

मसर्रतों के हवाले से घर के आँगन में
ग़मों की भीड़ का इक कारखाना लगता है

नदीम मैं नहीं कहता, ये लोग कहते हैं
तेरा यह तर्जे-बयां शायराना लगता है

१४ जून २०१०

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