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अनुभूति में डॉ. शिवशंकर मिश्र की रचनाएँ— 

अंजुमन में--
क्यों कभी
दिन बुरे आते हैं
माफ कर दो, भूल जाओ
हारते ही आए

 

क्यों कभी

क्यों कभी मौका ही ऐसा दुश्मनों को दो
दिल तुम्हारा है, तुम अपने हाथ से तोड़ो।

भूल जाओ क्या तुम्हें पाना था, क्या पाया
दोनों हाथों से हवा बर्बादियों को दो।

गम करो किस बात का, खुशियाँ मनाओ क्यों
सोचना ही किसलिए, जो चाहे अब हो, हो।

यह जमाना है दलालों का, दलाली का
देखते जाओ सभी कुछ, होता है जो जो।

’नो‘ कहो जब ’एस‘ तुम्हें हो बोलना दिल से
’एस‘ कहो जब असलियत में बोलना ’नो‘ हो।

जो सुकू दे, थोड़ी राहत दे कभी दिल को
कुछ तो ऐसा चाहिए, कुछ ऐसा भी तो हो।

उन के दावों की हकीकत भी खुले कुछ तो
’मिशरा‘ हो जाए कभी तो हाथ फिर दो-दो।

२७ अगस्त २०१२

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