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अनुभूति में ठाकुरदास सिद्ध की रचनाएँ-

नयी रचनों में-
कहीं वो गजल तो नहीं
पा गया बंदूक
हर मरहले का
हर सितम पर मौन रहते

अंजुमन में-
ढह रहे हैं घर हमारे
बात ठहरे तो
मुस्कुराकर ले गया
स्वारथ के दलदल में

 

बात ठहरे तो

बात ठहरे तो कहाँ ठहरे।
वो अगर हैं बेज़ुबाँ ठहरे।

ख़ूब से हैं ख़ूबतर पुतले।
पर नज़र तेरी दुकाँ ठहरे।

हम चलें, चल देते सूरज-चाँद।
ठहरें जो हम, आसमाँ ठहरे।

सिर्फ़ पानी वो नहीं लाए।
ले के सर पे बिजलियाँ ठहरे।

पुर असर मुस्कान फिर देखी।
फिर नज़र के इम्तिहाँ ठहरे।

चल दिए वो रूठ के उठ के।
पाँव के बाकी निशाँ ठहरे।

ख़ुशनुमा है और दिलकश है।
देख मंजर महरबाँ ठहरे।

लोग कहते हैं हवा उनकी।
साँस अपनी भी कहाँ ठहरे।

है वही घर और दुनिया भी।
'सिद्ध' हम जब औ' जहाँ ठहरे।

१ अप्रैल २०१६

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