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अनुभूति में उषा यादव 'उषा' की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
उदास है श्रम चाँद
देखना एक दिन ''फिर''
प्रेम नीड़

सुनो

अंजुमन में--
कोई भी शै नहीं
दरमियाँ धूप-सी
पुरखतर राह है
बन्द है
हर तरफ दिखते हैं

 

उदास है श्रम चाँद

सालहा-साल से मुन्तज़िर हैं श्रम के हस्ताक्षर
'देवताओं' का महल छोड़
आखिर कब आयेगी
अँधेरे की पर्वत सी दहलीज़ पर
अपरिमित दूध चाँदनी!
सदियों से उजाड़ हैं श्रमिकों की झोपड़ियाँ
कंपकपाती साँस-साँस
साँसत में शब्द। साँच
आज भी उम्मीदों की सुलग रही हैं रानाइयाँ
चाँदनी के बगै़र
अधूरा उदास है श्रम चाँद
कब समायेगा अतीत के आगोश में
अन्धा युग, अन्धा युग?
दृग बन्द किये हुये
वक़्त भी है मौन-मौन
संस्कारहीन
विश्व में
सुने श्रम की पुकार कौन

१० मार्च २०१४

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