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अनुभूति में विवेक चौहान की रचनाएँ-

अंजुमन में-
कभी पास अपने
गगन पूरा तड़पता है
गमों का दौर है जो अब
नजर मुझसे मिला लो तुम
न मेरा दिल सँभलता है

 

न मेरा दिल सँभलता है

न मेरा दिल सँभलता है, न मेरा दम निकलता है
तुझे दिल में बसा करके, ये मेरा दिल धड़कता है

बरसता है सुनो सावन, सनम तेरी जो यादों का
बहुत रोता हूँ मैं गौरी ये मेरा दिल मचलता है

मैं सुनता हूँ कभी तेरी वो पायल की जो छनछन को
मेरा दिल खूब रोता है तो ये आँसू बिखरता है

जो आती हो सनम ओढ़े हुए चूनर वो तुम पीली
तुम्हीं को देख करके रंग तब मौसम बदलता है

कभी आओ मेरे सीने से लगकर बाँहों में भर लो
तुम्हारे ही लिये सुन लो कवी सजता सँवरता है
 

१ अप्रैल २०१७

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