अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अम्बरीष श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अक्सर देखा है
कुछ तथ्य राज-मिस्त्री संग
गृह प्रवेश
भूकंप घर और हम

दोहों में-
माँ की महिमा

 

गृह प्रवेश
(आर्कीटेक्ट की नज़र से )

एक रोज़ अपने पुराने परिचित
पधारे मेरे कार्यालय में
आते ही चहककर बोले
फलां आर्कीटेक्ट कल ही मिले
उनसे बोला कि
बहुतेरे भवन बनवाते हैं
तो उन सबके गृह प्रवेश भी होते होंगे
फिर तो बड़ी मौज होगी
वाह भाई क्या खूब
उड़तीं होंगीं दावतें

वो आर्कीटेक्ट बोले
भाई कहो तो सच सच बताऊँ
भवन बनते-बनते
अपने और सेवाग्राहक के
सम्बन्ध हो जाते हैं इतने ख़राब
कि दावत देना तो दूर
निमंत्रण तक नहीं मिलता जनाब
और आप हैं कि
दावत की बात करतें हैं

यह सुनकर मैं भी हुआ चिंतित
और सीखा इक अनोखा सबक
कि चाहे जैसे भी हो
सम्बन्ध तो अच्छे ही बनाये रखने होंगें
पर आखिर कैसे
तभी गूँजी एक आवाज़
अपने अन्तःकरण से
जो भी काम करो
हमेशा ही अपना जान के करो
हमनें तत्काल ही इसे
अपना लिया
और मूल मंत्र बना लिया
तभी तो आज
हमें अपने हर एक
गृह प्रवेश की दावत
सदैव सुलभ होती आ रही है
सदैव ही सुलभ होती आ रही है

२३ नवंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter