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अनुभूति में अम्बिका दत्त की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
असरात
कविता की समाप्ति पर
जिंदा तो रहूँगा
डूबते हुए स्वप्न
दरवाजे पे खड़ी कविता
पेड़ के पास से गुजरते हुए

 

डूबते हुए स्वप्न

प्लास्टिक की तरह
कभी नष्ट न की जा सकने वाली इच्छाओं से
बरामदों तक भरे बाजार
फुटपाथ पर सड़क तक जमे हैं
सुन्दर सजावटी सस्ते और टिकाऊ (?) सामान
जैसे
कूल्हों कंधों पीठ और हाथ के आराम के लिए
जरूरी है- एक गद्दा
जो आपकी पीठ की संरचना के अनुसार
बनाया गया है
नींद की संरचना के अनुसार बनाया गया गद्दा भी मिल सकता है
बाजार में ढूँढ़ने से
ऐसी कमर भी उपलब्ध है जिसमें
रीढ़ की हड्डी ही न हो
लोचदार और आरामदायक कमर!
मन के विश्राम के लिए!
उपलब्ध है
शांत जंगल की नींद से सकुशल लौट कर आई
आरियों और कुल्हाड़ियों की आवाज का संगीत
तैरते हैं समय के खर्राटे
जिसमें
डूबते जा रहे हैं कई स्वप्न।

२३ सितंबर २०१३

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